Tuesday, November 4, 2008

पुराणों में आंवले के वृक्ष का महत्व

पुराणों में आंवले का महत्व
पुराणों में आंवले के वृक्ष को परम पवित्र तथा भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय कहा गया है जिस घर में आंवले का पेड़ होता है उस में भूत ,प्रेत ,दैत्य व राक्षस का प्रवेश नहीं होता तथा उसकी छाया में किया गया दीप दान अनंत पुण्य फल प्रदान करने वाला होता है |
आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति
स्कन्द पुराण के अनुसार पूर्व काल में जब समस्त जगतएकार्णव जल से निमग्न था उस समय सृष्टि की रचना के विचार से ब्रह्मा जी जाप करने लगे |भगवद दर्शन से अनुराग वश उनके नेत्रों से जो जल निकल कर पृथ्वी पर गिरा उस से आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई |सब वृक्षों में प्रथम उत्पन्न होने के कारण ही इसे आदिरोह कहा गया है|
आंवले का प्रयोग एवम महत्व
आंवले के सेवन से आयु में वृद्धि ,उसका जल पीने से धर्म का संचय तथा उसके जल में स्नान करने से दरिद्रता दूर हो कर समस्त ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है|आंवले के दर्शन ,स्पर्श एवम उसके नाम के उच्चारण से ही श्री विष्णु प्रसन्न हो जाते है | एकादशी तिथि में भगवान् विष्णु को आंवला अर्पित करने पर सभी तीर्थों के स्नान का फल मिल जाता है |जिस घर में आंवले का वृक्ष या उसका फल रहता है उसमे लक्ष्मी एवम विष्णु का वास होता है |आंवले के रस में स्नान करने पर दुष्ट एवम पाप ग्रहों का प्रभाव नहीं होता |मृत्यु काल में जिसके मुख ,नाक कान या बालों में आंवले का फल रखा जाता है वह व्यक्ति विष्णु लोक को जाता है |सर के बाल नित्य आंवला मिश्रित जल से धोने पर कलियुग के दोषों का नाश होता है |कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आंवले के वृक्ष का पूजन व प्रदक्षिणा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है
सूर्य -चन्द्र ग्रहण ,सक्रांति ,शुक्र वार ,६ -१ -९ -एवम अमावस तिथि को आंवले का त्याग करना चाहिए |

Friday, October 31, 2008

पुराणों में पीपल की पूजा का महत्व

पुराणों में पीपल के वृक्ष के महत्व का विस्तार से वर्णन किया गया है |महामुनि व्यास के अनुसार प्रात: स्नान के बाद पीपल का स्पर्श करने से व्यक्ति के समस्त पाप भस्म हो जाते हैं तथा लक्ष्मी की प्राप्ति होती है |उसकी प्रदक्षिणा करने से आयु में वृद्धि होती है |अश्वत्थ वृक्ष को दूध ,नैवेद्य ,धूप -दीप ,फल -फूल अर्पित करने से मनुष्य को समस्त सुख -वैभव की प्राप्ति होती है |
पीपल की जड़ के निकट बैठ कर जो जप ,दान ,होम ,स्तोत्र पाठ अनुष्ठान किया जाता है उनका फल अक्षय होता है |पीपल की जड़ में श्री विष्णु ,मध्य में शिव -शंकर तथा अग्र भाग में ब्रह्मा स्थित होते हैं अतः उस को प्रणाम मात्र से ही समस्त देवता प्रसन्न हो जाते हैं |पीपल के नीचे किया गया दान अक्षय हो कर जन्म -जन्मान्तरों तक फलदाई होता है |जिस प्रकार संसार में गौ ,ब्राह्मण देवता पूजनीय हैं उसी प्रकार पीपल भी पूजा के योग्य है |
पीपल को रोपने से धन ,रक्षा करने से पुत्र ,स्पर्श करने से स्वर्ग एवम पूजने से मोक्ष की प्राप्ति होती है |जो व्यक्ति पीपल को काटता या हानि पहुंचाता है उसे एक कल्प तक नर्क भोग कर चांडाल की योनी में जन्म लेना पड़ता है |

Tuesday, October 21, 2008

समस्त धर्मों में पुण्यतम् कर्म :माता-पिता की सेवा

संसार में समस्त धर्मों मेंपुण्यतम् कर्म क्या है ?किस अनुष्ठान के करने से मानव अक्षय पद प्राप्त कर सकता है ?किस कर्म के करने पर मृत्यु लोक के निवासी यश एवम मोक्ष के अधिकारी हो सकते हैं ?
इन सभी प्रश्नों का उत्तर पदम् पुराण के श्रृष्टि खंड में महा मुनि व्यास ने सुंदर प्रकार से दिया है |
पञ्च महायज्ञ
महा मुनि व्यास के अनुसार माता -पिता की सेवा ,सब के प्रति समता का भाव ,पतिव्रत धर्म ,भगवद भजन तथा मित्र से द्रोह न करना - ये पाँच महा यज्ञ हैं |इनमे से किसी एक का भी जो व्यक्ति अनुष्ठान करता है वह यश ,वैभव तथा मोक्ष का अधिकारी होता है |
पित्रोरचार्थ पत्युस्च साम्यं सर्व जनेषु च |
मित्रा द्रोहो विष्णु भक्ति रेते पञ्च महामखा : ||
पदम् पुराण
माता -पिता की सेवा
पाँच महायज्ञों में भी माता -पिता की सेवा को महामुनि व्यास ने सबसे अधिक महत्व प्रदान किया है |पिता धर्म है ,पिता स्वर्ग है तथा पिता ही तप है |पिता के प्रसन्न हो जाने पर सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं |माता में सभी तीर्थ विद्यमान होते हैं |जो मानव अपनी सेवा से अपने माता -पिता को प्रसन्न एवम संतुष्ट करता है उसे गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है |जो माता -पिता की प्रदक्षिणा करता है उसके द्वारा समस्त पृथ्वी कीप्रदक्षिणा हो जाती है |जो नित्य माता -पिता को प्रणाम करता है उसे अक्षय सुख प्राप्त होता है |जब तक माता -पिता की चरण रज पुत्र के मस्तक पर लगी रहती है तब तक वह शुद्ध एवम पवित्र रहता है |
जो मनुष्य अपने माता -पिता की अवज्ञा करता है वह महा प्रलय तक नरक में निवास करता है |
रोगिणं चापि वृधंच पितरम वृत्ति कर्शितं |
विकलं नेत्र कर्णाभ्याम त्यक्त्वा ग्च्झेच्च रौरवं ||
पदम् पुराण
जो मानव रोगी , जीविकाहीन एवम अपाहिज माता पिता को त्याग देता है उसे रौरव नरक प्राप्त होता है |माता -पिता का अनादर करने पर उसके समस्त पुण्य क्षीण हो जाते हैं |