Saturday, April 27, 2013
dharam-sanskriti: दान का महत्त्व एवम रहस्य
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Tuesday, March 5, 2013
प्रयाग राज में कुम्भ स्नान के मेरे संस्मरण
प्रयाग राज में कुम्भ स्नान के मेरे
संस्मरण
जनवरी 2013 में ही
हमारा इलाहाबाद में चल रहे कुम्भ स्नान की यात्रा का कार्यक्रम बन गया था |
मेरे बहनोई अशोक गोस्वामी ने 23/2/2013
में कालका मेल में इलाहाबाद के लिए स्थान आरक्षित करा लिए थे | 31-12-2012 में सेवा निवृत हो जाने के बाद यह
मेरी पहली यात्रा थी | कुल 16 सदस्यों का
हमारा दल था जिसमें मैं ,मेरी पत्नी सुनीता ,बहन वीणा और बहनोई अशोक गोस्वामी , हमारे पडोसी कलि राम और उनकी पत्नी शामिल थे |
सुबह 2:30 की ट्रेन थी अतः हम सारी तैयारी
करके शाम का खाना जल्दी ही खा कर जल्दी ही सोने के लिए लेट गए पर नींद नहीं आई |
समय पर उठ कर घर को ताला लगा कर सामान ले
कर बाहर आये तो देखा बारिश हो रही थी | सामने से कलीराम भी गाड़ी
निकलवा कर समान रखवा रहे थे हम भी समान
डिक्की में रख कर जल्दी से गाड़ी में बैठ गए | कुरुक्षेत्र के स्टेशन पर सभी सदस्य एकत्रित हो
गए | गाडी लगभग ठीक समय
पर पहुच गयी | स्थान आरक्षित होते
हुए भी गाड़ी में इतने कम समय पर डिब्बे में चढ़ना आसान नहीं था | अंदर से कोई डिब्बा खोलने के लिए तैयार ही नहीं
था |आरक्षित डिब्बे में
भी ऐसे यात्रियों की बहुत भीड़ थी जिनका कोई आरक्षण नहीं था यह बहुत असुविधाजनक और
असुरक्षित है और रेल विभाग को इस और ध्यान देने की आवश्यकता है | खैर किसी प्रकार हम सभी अपनी अपनी सीट पर पहुच गए
| तालमेल करके हमने
अपनी सीटें आस पास ही कर ली और सो गए | दिन भजन कीर्तन करते हुए बीत गया और
शाम को लगभग 6:30 पर गाडी इलाहाबाद पहुँच गयी| हमारे सदस्यों में एक वाराणसी के पास के रहने
वाले पंडित उत्तम जी थे जिन्होंने दो गाडियां पहले से ही 14000/ रूपए मेंपूर्ण
यात्रा के लिए बुक करवा रखी थी | स्टेशन से बाहर आते ही हम उन वाहन चालकों के साथ वाहनों की और चल दिए | बारिश ने अभी भी पीछा नहीं छोड़ा था | सड़क पर इतना पानी भरा था की बुलेरो गाड़ी में चढ़ते
हुए जूते भी पूरी तरह से भीग गए | पास के ही एक मंदिर में जा कर पहले सभी ने अपने अपने घर से लाया खाना
खाया | सुनीता ने पूरियां
और सूखे आलू बना रखे थे ,हमने उन्हीं का डिनर किया | इसके बाद हम सब चित्रकूट की ओर रवाना हुए जो इलाहबाद से लगभग दो
सौ किलो मीटर की दूरी पर था | चित्रकूट वाली सड़क पर बड़ा भयंकर जाम लगा हुआ था
जिसका कोई ओर छोर नजर ही नहीं आ रहा था | चार
घंटे हमें उस जाम में से निकलने पर लग गए और रात चार बजे हम चित्रकूट पहुंचे |
सोने के लिए बड़ी कठिनता से दो कमरे एक
मंदिर में मिले जिसमें दरी बिछी हुई थी | रात को बाकी सभी तो सो
गए पर मुझे नींद ठीक से नहीं आई |24-2-12 की सुबह उठ कर सभी स्नान के लिए चित्रकूट
के घाट पर चल दिए | स्नान करके घाट पर
ही स्थित मंदिर में गए जहां तुलसी दास जी की सुन्दर और मनोरम प्रतिमा स्थापित थी |
वहीं पर एक चाय की दुकान पर नाश्ता पानी किया |चाय बड़े छोटे छोटे कप में मिल रही थी भला उसमें हमारा क्या होता | सभी ने दो दो कप चाय के लिए तो कुछ तसल्ली हुई
वहाँ से हम एक पहाड़ी
पर स्थित सीता रसोई और हनुमान मंदिर देखने गए | वहाँ तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों का मार्ग था
जिसके दोनों और बड़े बड़े पत्थरऔर जंगल था | बड़ी संख्या में लंगूर थे जो बड़े शांत थे | किसी भी यात्री को कुछ भी नहीं कह रहे थे |मैंने उनके कुछ चित्र भी लिए | मंदिर के बिलकुल नीचे एक कुआं था जिसमें गोलाकार
सीढियां बनी हुई थी |
पास ही माता
अनुसुइया का मंदिर था जिसके दर्शन हम सब ने किये | मंदिर में रामायण के सभी महत्वपूर्ण दृश्य अंकित
किये गए हैं जो बड़े सुन्दर और प्रेरणाप्रद लगते हैं |यहाँ भी लंगूर वानरों की भरमार थी |
शाम के पांच बजे के
आस पास हम इलाहाबाद के लिए चल पड़े ताकि 25-2-2012 को पूर्णिमा तिथि में कुम्भ
स्नान हो सके | कुम्भ नगरी में
प्रवेश करके हमने अपनी गाडियां बाहर ही छोड़ दी और लगभग तीन चार किलो मीटर पैदल चल
कर त्रिवेणी स्थल पर पहुच गए | तीन तरफ जन सैलाब था और सामने संगम | चारों और जगमगाती रोशनियों में संगम का वह दृश्य
अलौकिक लग रहा था | हम सब ने कुछ समय
संकीर्तन किया और पूर्णिमा तिथि लगते ही त्रिवेणी में जी भर कर स्नान किया और
पितरों को तर्पण दिया |सभी ने साथ लाये
अपने पात्रों में त्रिवेणी का पवित्र जल भर लिया और वापिस चल पड़े |
इलाहाबाद हम रुके
नहीं बल्कि साथ ही काशी जी की और चल पड़े | काशी में हम सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में ठहरे | विश्वविद्यालय के भवन बहुत प्राचीन तथा भव्य हैं | परन्तु रख रखाव की बहुत कमी नजर आई |थोडा आराम करके एक ढाबे पर खाना खाया और बोद्धों
के तीर्थ स्थल सारनाथ देखने के लिए चल दिए | सारनाथ बहुत ही सुन्दर और दर्शनीय स्थल है |
अनेक स्थलों पर बुद्ध धर्म के अनुयायी उपासना
में लीन थे | विदेशी पर्यटक भी
बहुत बड़ी संख्या में भ्रमण कर रहे थे | हमारा राष्ट्रीय चिन्ह को इसी सारनाथ के स्तम्भ से अपनाया गया है|
सारनाथ में एक
म्यूजियम भी है पर समय की कमी के कारण हम उसे नहीं देख सके | वापसी में गंगा घाट के निकट कुछ मंदिरों का दर्शन
किया जिनमें हनुमान मंदिर और खाटू श्याम जी के मंदिर प्रमुख थे | काशी जी के घाटों की शोभा निराली है | गंगा जी में सुन्दर और अलंकृत नौकाएं दूर दूर तक
तैरती हुई दिखाई दे रही थी | उत्तम जी ने बताया कि कुल अस्सी घाट हैं जिनमें मणिकर्णिका और
दशाश्वमेध घाट प्रसिद्ध हैं | देवकीनंदन खत्री के प्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता
सन्तिति और भूतनाथ में भी इन घाटों का उल्लेख मैंने पढ़ा है |पर मुझे सफाई कि कमी वहाँ पर बहुत खली | घाटों में घूमते हुए हम बाहर आ गए और रात्रि भोजन करके अपने ठहरने के स्थान
पर पहुँच गए | मच्छर बहुत ही अधिक
थे अतः मैं रात को ठीक से सो नहीं पाया | अगले दिन प्रातः तीन बजे उठ कर हम सभी ने काशी जी के दशाश्वमेध घाट पर
स्नान किया और चार बजे काशी विश्वनाथ जी के दर्शन के लिए लाइन में लग गए | बहुत भीड़ थी क्योंकि कुम्भ स्नान करने वाले सभी
यात्री काशी विश्वनाथ जी के दर्शन के लिए आ रहे थे |लाइन बहुत लंबी थी और चींटी कि गति से आगे बढ़ रही
थी | मैंने देखा कि कुछ
पंडे या दलाल 500/- से 1000/- रूपए प्रति
व्यक्ति ले कर पुलिस कि सहायता से उन लोगों को अवैध तरीके से आगे पहुंचा रहे हैं |
लाइन में खड़े लोग विरोध भी कर रहे थे पर
कोई सुन नहीं रहा था | पुलिस ,पंडों और दलालों का यह गठजोड़ ऐसे धर्म के स्थान
पर ऐसे अधर्म के कार्यों में संलग्न था जो घोर निंदनीय है | पर जनता में ही धर्म कहाँ है ? लाइन में न लग कर ,अधर्म का सहारा ले कर क्या सत्य में काशी
विश्वनाथ के दर्शन होंगे ? धन्य है भारत कि वह धार्मिक
जनता जो उस ईश्वर को भी मूर्ख समझती है जिसके दर्शन करके वह अपनी आत्मा का उद्धार
करना चाहती है | कैमरा ,मोबाइल इत्यादि ले जाना मना था | रास्ते में अनेक बार तलाशी भी हुई | सुरक्षा के प्रबंध बड़े कड़े थे | लगभग चार घंटे लाइन में सरकते हुए हम विश्वनाथ जी
के द्वार पर पहुच गए | मंदिर में प्रवेश
करके विश्वनाथ जी पर जलाभिषेक किया और दर्शन किये |उस स्थान पर एक अलौकिक उर्जा का अनुभव हुआ |
ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए कुछ समय
हमने वहीँ व्यतीत किया | साथ ही अन्नपूर्णा माता का मंदिर था जिसमें हम सब ने प्रसाद ग्रहण
किया | लगभग दिन के ग्यारह
बज चुके थे और शाम को 3:20 पर वाराणसी के स्टेशन से श्रमजीवी एक्सप्रेस वापसी की
गाडी पकडनी थी | हम वापिस
सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय गए ,अपना सारा सामान गाडी में रखा और वहाँ से भैरव मंदिर चले गए | कहते
हैं की काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद भैरव मंदिर में अवश्य जाना चाहिए | भैरव के दर्शन करके और नजर के काले धागे ले कर हम
सीधे रेलवे स्टेशन पहुँच गए | गाडी दो घंटे लेट आई |सारी रात सो कर निकल गयी और दिल्ली हम प्रातः 7:50 पर पहुँच गए|
वहाँ से 8:10 पर कुरुक्षेत्र के लिए
साधारण यात्री गाडी मिल गयी जिसने 11:50 पर हमें कुरुक्षेत्र पहुंचा दिया |
सारी यात्रा बहुत आनंद दायक और भाव पूर्ण
रही यद्यपि ठहरने का समुचित प्रबंध न होने के कारण शारीरिक थकान का प्रभाव भी रहा |
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Friday, November 14, 2008
Tuesday, November 4, 2008
पुराणों में आंवले के वृक्ष का महत्व
पुराणों में आंवले का महत्व
पुराणों में आंवले के वृक्ष को परम पवित्र तथा भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय कहा गया है जिस घर में आंवले का पेड़ होता है उस में भूत ,प्रेत ,दैत्य व राक्षस का प्रवेश नहीं होता तथा उसकी छाया में किया गया दीप दान अनंत पुण्य फल प्रदान करने वाला होता है |
आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति
स्कन्द पुराण के अनुसार पूर्व काल में जब समस्त जगतएकार्णव जल से निमग्न था उस समय सृष्टि की रचना के विचार से ब्रह्मा जी जाप करने लगे |भगवद दर्शन से अनुराग वश उनके नेत्रों से जो जल निकल कर पृथ्वी पर गिरा उस से आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई |सब वृक्षों में प्रथम उत्पन्न होने के कारण ही इसे आदिरोह कहा गया है|
आंवले का प्रयोग एवम महत्व
आंवले के सेवन से आयु में वृद्धि ,उसका जल पीने से धर्म का संचय तथा उसके जल में स्नान करने से दरिद्रता दूर हो कर समस्त ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है|आंवले के दर्शन ,स्पर्श एवम उसके नाम के उच्चारण से ही श्री विष्णु प्रसन्न हो जाते है | एकादशी तिथि में भगवान् विष्णु को आंवला अर्पित करने पर सभी तीर्थों के स्नान का फल मिल जाता है |जिस घर में आंवले का वृक्ष या उसका फल रहता है उसमे लक्ष्मी एवम विष्णु का वास होता है |आंवले के रस में स्नान करने पर दुष्ट एवम पाप ग्रहों का प्रभाव नहीं होता |मृत्यु काल में जिसके मुख ,नाक कान या बालों में आंवले का फल रखा जाता है वह व्यक्ति विष्णु लोक को जाता है |सर के बाल नित्य आंवला मिश्रित जल से धोने पर कलियुग के दोषों का नाश होता है |कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आंवले के वृक्ष का पूजन व प्रदक्षिणा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है
सूर्य -चन्द्र ग्रहण ,सक्रांति ,शुक्र वार ,६ -१ -९ -एवम अमावस तिथि को आंवले का त्याग करना चाहिए |
पुराणों में आंवले के वृक्ष को परम पवित्र तथा भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय कहा गया है जिस घर में आंवले का पेड़ होता है उस में भूत ,प्रेत ,दैत्य व राक्षस का प्रवेश नहीं होता तथा उसकी छाया में किया गया दीप दान अनंत पुण्य फल प्रदान करने वाला होता है |
आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति
स्कन्द पुराण के अनुसार पूर्व काल में जब समस्त जगतएकार्णव जल से निमग्न था उस समय सृष्टि की रचना के विचार से ब्रह्मा जी जाप करने लगे |भगवद दर्शन से अनुराग वश उनके नेत्रों से जो जल निकल कर पृथ्वी पर गिरा उस से आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई |सब वृक्षों में प्रथम उत्पन्न होने के कारण ही इसे आदिरोह कहा गया है|
आंवले का प्रयोग एवम महत्व
आंवले के सेवन से आयु में वृद्धि ,उसका जल पीने से धर्म का संचय तथा उसके जल में स्नान करने से दरिद्रता दूर हो कर समस्त ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है|आंवले के दर्शन ,स्पर्श एवम उसके नाम के उच्चारण से ही श्री विष्णु प्रसन्न हो जाते है | एकादशी तिथि में भगवान् विष्णु को आंवला अर्पित करने पर सभी तीर्थों के स्नान का फल मिल जाता है |जिस घर में आंवले का वृक्ष या उसका फल रहता है उसमे लक्ष्मी एवम विष्णु का वास होता है |आंवले के रस में स्नान करने पर दुष्ट एवम पाप ग्रहों का प्रभाव नहीं होता |मृत्यु काल में जिसके मुख ,नाक कान या बालों में आंवले का फल रखा जाता है वह व्यक्ति विष्णु लोक को जाता है |सर के बाल नित्य आंवला मिश्रित जल से धोने पर कलियुग के दोषों का नाश होता है |कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आंवले के वृक्ष का पूजन व प्रदक्षिणा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है
सूर्य -चन्द्र ग्रहण ,सक्रांति ,शुक्र वार ,६ -१ -९ -एवम अमावस तिथि को आंवले का त्याग करना चाहिए |
Friday, October 31, 2008
पुराणों में पीपल की पूजा का महत्व
पुराणों में पीपल के वृक्ष के महत्व का विस्तार से वर्णन किया गया है |महामुनि व्यास के अनुसार प्रात: स्नान के बाद पीपल का स्पर्श करने से व्यक्ति के समस्त पाप भस्म हो जाते हैं तथा लक्ष्मी की प्राप्ति होती है |उसकी प्रदक्षिणा करने से आयु में वृद्धि होती है |अश्वत्थ वृक्ष को दूध ,नैवेद्य ,धूप -दीप ,फल -फूल अर्पित करने से मनुष्य को समस्त सुख -वैभव की प्राप्ति होती है |
पीपल की जड़ के निकट बैठ कर जो जप ,दान ,होम ,स्तोत्र पाठ व अनुष्ठान किया जाता है उनका फल अक्षय होता है |पीपल की जड़ में श्री विष्णु ,मध्य में शिव -शंकर तथा अग्र भाग में ब्रह्मा स्थित होते हैं अतः उस को प्रणाम मात्र से ही समस्त देवता प्रसन्न हो जाते हैं |पीपल के नीचे किया गया दान अक्षय हो कर जन्म -जन्मान्तरों तक फलदाई होता है |जिस प्रकार संसार में गौ ,ब्राह्मण व देवता पूजनीय हैं उसी प्रकार पीपल भी पूजा के योग्य है |
पीपल को रोपने से धन ,रक्षा करने से पुत्र ,स्पर्श करने से स्वर्ग एवम पूजने से मोक्ष की प्राप्ति होती है |जो व्यक्ति पीपल को काटता या हानि पहुंचाता है उसे एक कल्प तक नर्क भोग कर चांडाल की योनी में जन्म लेना पड़ता है |
पीपल की जड़ के निकट बैठ कर जो जप ,दान ,होम ,स्तोत्र पाठ व अनुष्ठान किया जाता है उनका फल अक्षय होता है |पीपल की जड़ में श्री विष्णु ,मध्य में शिव -शंकर तथा अग्र भाग में ब्रह्मा स्थित होते हैं अतः उस को प्रणाम मात्र से ही समस्त देवता प्रसन्न हो जाते हैं |पीपल के नीचे किया गया दान अक्षय हो कर जन्म -जन्मान्तरों तक फलदाई होता है |जिस प्रकार संसार में गौ ,ब्राह्मण व देवता पूजनीय हैं उसी प्रकार पीपल भी पूजा के योग्य है |
पीपल को रोपने से धन ,रक्षा करने से पुत्र ,स्पर्श करने से स्वर्ग एवम पूजने से मोक्ष की प्राप्ति होती है |जो व्यक्ति पीपल को काटता या हानि पहुंचाता है उसे एक कल्प तक नर्क भोग कर चांडाल की योनी में जन्म लेना पड़ता है |
Tuesday, October 21, 2008
समस्त धर्मों में पुण्यतम् कर्म :माता-पिता की सेवा
संसार में समस्त धर्मों मेंपुण्यतम् कर्म क्या है ?किस अनुष्ठान के करने से मानव अक्षय पद प्राप्त कर सकता है ?किस कर्म के करने पर मृत्यु लोक के निवासी यश एवम मोक्ष के अधिकारी हो सकते हैं ?
इन सभी प्रश्नों का उत्तर पदम् पुराण के श्रृष्टि खंड में महा मुनि व्यास ने सुंदर प्रकार से दिया है |
पञ्च महायज्ञ
महा मुनि व्यास के अनुसार माता -पिता की सेवा ,सब के प्रति समता का भाव ,पतिव्रत धर्म ,भगवद भजन तथा मित्र से द्रोह न करना - ये पाँच महा यज्ञ हैं |इनमे से किसी एक का भी जो व्यक्ति अनुष्ठान करता है वह यश ,वैभव तथा मोक्ष का अधिकारी होता है |
पित्रोरचार्थ पत्युस्च साम्यं सर्व जनेषु च |
मित्रा द्रोहो विष्णु भक्ति रेते पञ्च महामखा : ||
पदम् पुराण
माता -पिता की सेवा
पाँच महायज्ञों में भी माता -पिता की सेवा को महामुनि व्यास ने सबसे अधिक महत्व प्रदान किया है |पिता धर्म है ,पिता स्वर्ग है तथा पिता ही तप है |पिता के प्रसन्न हो जाने पर सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं |माता में सभी तीर्थ विद्यमान होते हैं |जो मानव अपनी सेवा से अपने माता -पिता को प्रसन्न एवम संतुष्ट करता है उसे गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है |जो माता -पिता की प्रदक्षिणा करता है उसके द्वारा समस्त पृथ्वी कीप्रदक्षिणा हो जाती है |जो नित्य माता -पिता को प्रणाम करता है उसे अक्षय सुख प्राप्त होता है |जब तक माता -पिता की चरण रज पुत्र के मस्तक पर लगी रहती है तब तक वह शुद्ध एवम पवित्र रहता है |
जो मनुष्य अपने माता -पिता की अवज्ञा करता है वह महा प्रलय तक नरक में निवास करता है |
रोगिणं चापि वृधंच पितरम वृत्ति कर्शितं |
विकलं नेत्र कर्णाभ्याम त्यक्त्वा ग्च्झेच्च रौरवं ||
पदम् पुराण
जो मानव रोगी , जीविकाहीन एवम अपाहिज माता पिता को त्याग देता है उसे रौरव नरक प्राप्त होता है |माता -पिता का अनादर करने पर उसके समस्त पुण्य क्षीण हो जाते हैं |
इन सभी प्रश्नों का उत्तर पदम् पुराण के श्रृष्टि खंड में महा मुनि व्यास ने सुंदर प्रकार से दिया है |
पञ्च महायज्ञ
महा मुनि व्यास के अनुसार माता -पिता की सेवा ,सब के प्रति समता का भाव ,पतिव्रत धर्म ,भगवद भजन तथा मित्र से द्रोह न करना - ये पाँच महा यज्ञ हैं |इनमे से किसी एक का भी जो व्यक्ति अनुष्ठान करता है वह यश ,वैभव तथा मोक्ष का अधिकारी होता है |
पित्रोरचार्थ पत्युस्च साम्यं सर्व जनेषु च |
मित्रा द्रोहो विष्णु भक्ति रेते पञ्च महामखा : ||
पदम् पुराण
माता -पिता की सेवा
पाँच महायज्ञों में भी माता -पिता की सेवा को महामुनि व्यास ने सबसे अधिक महत्व प्रदान किया है |पिता धर्म है ,पिता स्वर्ग है तथा पिता ही तप है |पिता के प्रसन्न हो जाने पर सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं |माता में सभी तीर्थ विद्यमान होते हैं |जो मानव अपनी सेवा से अपने माता -पिता को प्रसन्न एवम संतुष्ट करता है उसे गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है |जो माता -पिता की प्रदक्षिणा करता है उसके द्वारा समस्त पृथ्वी कीप्रदक्षिणा हो जाती है |जो नित्य माता -पिता को प्रणाम करता है उसे अक्षय सुख प्राप्त होता है |जब तक माता -पिता की चरण रज पुत्र के मस्तक पर लगी रहती है तब तक वह शुद्ध एवम पवित्र रहता है |
जो मनुष्य अपने माता -पिता की अवज्ञा करता है वह महा प्रलय तक नरक में निवास करता है |
रोगिणं चापि वृधंच पितरम वृत्ति कर्शितं |
विकलं नेत्र कर्णाभ्याम त्यक्त्वा ग्च्झेच्च रौरवं ||
पदम् पुराण
जो मानव रोगी , जीविकाहीन एवम अपाहिज माता पिता को त्याग देता है उसे रौरव नरक प्राप्त होता है |माता -पिता का अनादर करने पर उसके समस्त पुण्य क्षीण हो जाते हैं |
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